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मंगलवार, 9 नवंबर 2010

मेरे पास


आज सुबह जब पत्तों पर देखा
ओस की बूंद
तो लगा तुम बैठे हो
दोपहरी जब आकाष में,
उमड़- घुमड़ आए काले बादल
तो लगा तुमने खोल दिए अपने जुल्फ,
sham नदी किनारे जब डूब रहा था सूरज
तो लगा चमका रही हो तुम
कजरारे आंखों के बीच
अपनी बिंदिया,
और जब घिर आई रात,
तो लगा ,
काले चादर में
अपने गोरे बदन को लपेटे,
तुम आ गई हो पास,
बिल्कुल मेरे पास .............

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