आज सुबह जब पत्तों पर देखा
ओस की बूंद
तो लगा तुम बैठे हो
दोपहरी जब आकाष में,
उमड़- घुमड़ आए काले बादल
तो लगा तुमने खोल दिए अपने जुल्फ,
sham नदी किनारे जब डूब रहा था सूरज
तो लगा चमका रही हो तुम
कजरारे आंखों के बीच
अपनी बिंदिया,
और जब घिर आई रात,
तो लगा ,
काले चादर में
अपने गोरे बदन को लपेटे,
तुम आ गई हो पास,
बिल्कुल मेरे पास .............
ओस की बूंद
तो लगा तुम बैठे हो
दोपहरी जब आकाष में,
उमड़- घुमड़ आए काले बादल
तो लगा तुमने खोल दिए अपने जुल्फ,
sham नदी किनारे जब डूब रहा था सूरज
तो लगा चमका रही हो तुम
कजरारे आंखों के बीच
अपनी बिंदिया,
और जब घिर आई रात,
तो लगा ,
काले चादर में
अपने गोरे बदन को लपेटे,
तुम आ गई हो पास,
बिल्कुल मेरे पास .............
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