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रविवार, 28 नवंबर 2010

सपना


मैं काफी का मग थाम कर बैठा।
और तुमने मेरे कंधों पर बिखेर दिये,
अपने भींगे जुल्फ,
फिर नर्म हथेलियों ने छुआ,
और कजरारी आंखें झील बन
डुबोने लगी मुझे।
फिर अपनेष्षबनमी होठ
मेरे होठों के पास ला,
तुमने धीरे से कहा
आई लव यू ।

बुधवार, 17 नवंबर 2010

बस इतनी सी आरजू है


बस इतनी सी आरजू है,
तुम चाहो तो भूल जाओ मुझे,
पर बचाएं रखना हमेषा,
अपनी मुस्कुराहट,
हंसाना, खिलखिलाना,
सहेजे रखना, गुलाबी होठ,
पावों की थिरकन,
दिल का गुनगुनाना,
पाजेवों की रूनझून,
सपनों में खो जाना

समेटे रखना बांहो में,
ष्षबनम की बूंद,
कचनार के फूल ,
हरि- भरी दूब ,
और बारिष में जी भर
भींगने का कोई बहाना,
सजाए रखना हमेषा,
आंखों में काजल
जुल्फों में सावन,
बदन की खुषबू
और हर पल जी लेने का
अपना तराना।

सोमवार, 15 नवंबर 2010

तुम लौट आओ


ये षबनमी धूप का आलम,
बलखाती फिजा,
खुषगवार मौसम,
कुहरे का चिलमन
सब तुम्हें बुलाते हैं,
जानती हो.....
गंगा घाट पर अब भी जुटते हैं
कलरव करते पंक्षी,
वो लंगरी मैना भी आती है,
फूदक- फूदक तुम्हें ढ़ूढती,
वो मंदिर की घंटियां
मस्जिद के अजान,
गिरिजाघर वाली सिस्टर भी,
गुब्बारे वाला नन्हा भोलू
अब भी उसी मांल के नीचे
बेचता है गुब्बारे,
तुम्हारे पसंदीदा गोलगप्पे की दुकान पर
वैसी ही भीड़ जुटती है,
फैसन षोरूम में कई नई डेसें टंग गई है
एक, चटक गुलाबी सी
तुम पर खुब फवेगी,
पार्क में लाल गुलाब फिर
खिलखिला आए हैं,
रंग- बिरंगी तितलियां भी आती हैं,
तुम्हारे लाये खरगोष,
डइंगरूम का गुलदस्ता,
जार मंे तैरती मछलियां,
इत्र की सीसी
और तुम्हारा मेकअप का सामान,
सबको इंतजार है तेरा
कोयल लौट आई है,
अपनी मीठी कूक के साथ,
राग और रंग भी लौट आये हैं,
बस तुम लौट आओ
तो फागुन झूम जाए।

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

जब कभी थक जाओ


मैं जानता हूं तुम जमाने से
तेज दौड़ना चाहती हो
और तुम्हें लगा कि मेरे कदम
इतने मजबूत नही कि
तेरे साथ दौड़ सकें!
पता नहीं तुम्हें कब,
चंदा की चमक से प्यारी,
बिजली की चकाचैध लगने लगी,
ष्षबनम की बूंदों पर चलते- मचलते,
तुम्हे रेड़ कारपेट लुभाने लगा,
हवा के मंद- मंद बयार से प्यारी,
सिक्कों की खनक लगने लगी,
तब तुमने अपनी रफ्तार बढ़ा ली,
और इसने कुचल दिए
हमारे रिष्ते,
पर तुम्हें इसका कोेई मलाल नहीं,
क्योंकि तुम पूरा करना चाहती हो,
जमाने से दो कदम आगे जाने की
अपनी जिद,
तेज रफ्तार, भागते दौड़ते
जब कभी थक जाओ तो एक बार
पीछे मुड़कर जरूर देखना,
ष्षायद तुम्हें महसूस हो कि
जिंदगी रफ्तार से ज्यादा खूबसूरत है।

मेरे पास


आज सुबह जब पत्तों पर देखा
ओस की बूंद
तो लगा तुम बैठे हो
दोपहरी जब आकाष में,
उमड़- घुमड़ आए काले बादल
तो लगा तुमने खोल दिए अपने जुल्फ,
sham नदी किनारे जब डूब रहा था सूरज
तो लगा चमका रही हो तुम
कजरारे आंखों के बीच
अपनी बिंदिया,
और जब घिर आई रात,
तो लगा ,
काले चादर में
अपने गोरे बदन को लपेटे,
तुम आ गई हो पास,
बिल्कुल मेरे पास .............

मेरी दुनिया


जब से तुम गई हो,
मैंने नहीं किए कभी भी
बंद अपने घर के दरबाजे
इसी उम्मीद के साथ कि
तुम लौट आओगी,
इसी आस में टकटकी लगाए
निहारता रहता हूं,
दरवाजे और खिड़कियों को
दिन-रात,सुबह- शाम।
फूलों के खिलखिलाने में
महसूसता हूं तुम्हारी गंध,
भवरों के क्रंदन में तेरा संगीत,
चिडियों में गीत,
जब हवा लहराकर बहती है तो
लगता है कि तुम बगिया में बैठ,
छमका रही हो अपनी पायल,
ओस की बूंद तेरे रेशमी छुअन
का एहसास दिलाती है,
जाड़े की धूप
तुम्हारी खिलखिलाहट सी लगती है,
मुझे मालूम है कि तुमने
अपनी अलग दुनिया बसा ली है,
पर मेरी दुनिया में तो
हमेशा तुम..... तुम.... बस तुम....
रचती बसती हो,रचती बसती रहोगी ।