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शनिवार, 14 जनवरी 2012

तेरी यादें


जाडे के धूप की मानिंद,
खिलखिलाती हुई.
दौडी चली आती है,
कभी पंक्षियों की तरह
चहकती है,
गार्डन से छत तक रस्यिों से
कसकर लिपट,
चमेली की बेलों सी महकती है,
तितलियों सी पंख फैला,
उड़ती है पास- पास,
फिर बारिश की बूंदों सी
भींगोती हुई मन को
ठीठुरते अंधेरी रात में,
बोनफायर बन ,
दहकती है,
यादें.....यादें.... बस .. तेरी यादें

1 टिप्पणी:

  1. sir aapne meri yado ko taja kar diya......lekin kya kare kismat kisi kisi ka sath nahi deta hai............

    jab mile hum unse balig... lekin nakabil the
    kabil hote hi door-door tak unka pata nahi tha............

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