जाडे के धूप की मानिंद,
खिलखिलाती हुई.
दौडी चली आती है,
कभी पंक्षियों की तरह
चहकती है,
गार्डन से छत तक रस्यिों से
कसकर लिपट,
चमेली की बेलों सी महकती है,
तितलियों सी पंख फैला,
उड़ती है पास- पास,
फिर बारिश की बूंदों सी
भींगोती हुई मन को
ठीठुरते अंधेरी रात में,
बोनफायर बन ,
दहकती है,
यादें.....यादें.... बस .. तेरी यादें